FROM THE DESK OF THE PRINCIPAL
उद्बोधन नवीन सत्र के आगमन पर मैं इस क्षेत्र के सभी नागरिकों, महाविद्यालय की प्रबन्ध समिति, शिक्षक, शिक्षणेत्तर सभी साथियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ, साथ ही मैं अपने सभी छात्र/छात्राओं को नये वर्ष की शुभ कामना भी देता हूँं। रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय का आदर्श वाक्य ‘‘चरैवेति चरैवेति’’ चलते रहो चलते रहो को अपनाते हुए विद्या प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयासरत् रहें। ‘‘विद्या धनम् सर्वधनम् प्रधानम्’’ विद्या सभी धनो में सर्वश्रेष्ठ है ‘‘विद्या ददाति विनयं, विनया दयाति पात्रताम्’’ विद्या से विनम्रता आती है विनम्रता से पात्रता अर्थात् योग्यता प्राप्त होती है। विद्या विहीन जीवन तुच्छ एव ंनगण्य होता है। माता शत्रु पिता वैरी येन वालो न पाठितः न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये वको यथा। वे माता और पिता शत्रु के समान है जो बच्चों को शिक्षा प्राप्त नहीं कराते हैं, बिना शिक्षा के बालक की स्थिति हंसों के बीच में बगुले जैसी होती है।
हमारे साहित्य में विद्या दान को सर्वोत्तम दान कहा गया है अपना महाविद्यालय श्र(ेय सेठ स्व. अयोध्या प्रसाद जी की लोकसेवा भावना का मूर्त रूप है। विद्या को श्रेष्ठ दान समझकर मा. श्री विष्णु भगवान अग्रवाल जी ने सन् 1993 में इस संस्था की स्थापना की। 1993 से महाविद्यालय में विद्या की निरन्तर धारा प्रवाहित हो रही है। महाविद्यालय शिक्षा के साथ-साथ शिक्षणेत्तर क्रिया कलापों के क्षेत्र में निरन्तर अग्रसर है। महाविद्यालय में स्नातक स्तर पर कला संकाय, वाणिज्य संकाय, विज्ञान संकाय की कक्षायें तथा स्नातकोत्तर स्तर पर एम.ए. अंग्रेजी, एम.काॅम. की कक्षायें संचालित हो रही हैं। बी.एड. इसी सत्र से प्रारम्भ हो रहा है। स्नातक स्तर पर गृहविज्ञान, भूगोल और इतिहास तथा स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी साहित्य, संस्कृत, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र व चित्रकला की कक्षायें संचालित करने की प्रक्रिया अन्तिम चरण में है। भविष्य में महाविद्यालय में बी.टी.सी. एवं एल.एल.बी. की कक्षायें भी संचालित होंगी। जिससे क्षेत्र के छात्र/छात्राओं को शिक्षा ग्रहण करने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा। महाविद्यालय में पाँच एन.एस.एस. की इकाइयाँ अपना उल्लेखनीय प्रदर्शन कर रही हैं। महाविद्यालय में एन.सी.सी. प्रक्रिया भी विचाराधीन है। प्रबन्ध समिति के सचिव मा. श्री रामप्रकाश शर्मा जी शिक्षा में गहरी रूचि रखते हैं। उनके अथक प्रयास से ही महाविद्यालय की स्थापना हो सकी, उन्हें उझानी का मालवीय कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। बच्चे राष्ट्र निर्माता, भाग्य विधाता, एवं कर्णधार होते हैं। शिक्षा वही है जो व्यक्ति में निहित शक्ति के स्त्रोत को जाग्रत कर उसे उसके लक्ष्य की ओर प्रेरित करें। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था - ‘‘उठो, जागो और अपने लक्ष्य तक पहुँचने से पहले मत रूको।’’ अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ ने कहा था कि - ‘‘उठो उठो सो रहे हो नाहक पयामे बाँगे जरस तो सुन लो, बढ़ो कि कोई बुला रहा है निशाने मंजिल दिखा दिखाकर।’’ किसी भी राष्ट्र एवं परिवार की उन्नति उसके नागरिको एवं सदस्यों की शिक्षा पर निर्भर करती है। हमारा अथक प्रयास रहेगा कि हम प्रत्येक छात्र/छात्रा को उच्च कोटि की शिक्षा प्रदान करें उन्हें शारीरिक, मानसिक, व्यवहारिक, आध्यात्मिक, व्यवसायिक एवं नैतिक शिक्षा देकर राष्ट्र सेवा के लिए समर्थ बना सकें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए महाविद्यालय के योग्य एवं अनुभवी शिक्षक सदैव छात्र/छात्राओं की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। इस नवीन सत्र में अपने सभी छात्र/छात्राओं का स्वागत करते हुए मैं आशा करता हूँ कि कालेज में स्थापित मूल्यों, नियमों, निर्देशों का पालन करते हुए महाविद्यालय की गरिमा के अनुकूल आचरण करेंगे। जीवन में उन्नति के लिए कठोर परिश्रम करेंगे। क्यांेकि ‘‘तुम ज्ञान हो विज्ञान हो तुम वीर सुभट बलिदानी हो, तुम जिधर चलो सूरज चल दे रूक गये हवा रूक जानी है।’’ अन्त में मैं आप सबको यह विश्वास दिलाता हूँ आप के इस प्रयास में मैं स्वयं तथा हमारे कर्मठ एवं योग्य शिक्षक, साथी एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारीगण पूर्ण सहयोग करेंगे। आपसे सफल एवं उज्जवल भविष्य की शुभकामनाओं के साथ! आपका डा0 प्रशांत वशिष्ठ (प्राचार्य)